आत्मविमोह (Autism) के लक्षण
आत्मविमोह (Autism) के लक्षण
आत्मविमोह (Autism) को एक लक्षण के बजाय एक विशिष्ट लक्षणों के समूह द्वारा बेहतर समझा जा सकता है। मुख्य लक्षणों में शामिल हैं सामाजिक संपर्क मे असमर्थता, बातचीत करने मे असमर्थता, सीमित शौक और दोहराव युक्त व्यवहार है। अन्य पहलुओं मे, जैसे खाने का अजीब तरीका हालाँकि आम है लेकिन निदान के लिए आवश्यक नहीं है।
सामाजिक विकास आत्मविमोह के शिकार मनुष्य सामाजिक व्यवहार मे असमर्थ होने के साथ ही दूसरे लोगों के मंतव्यों को समझने मे भी असमर्थ होते हैं इस कारण लोग अक्सर इन्हें गंभीरता से नहीं लेते।
सामाजिक असमर्थतायें बचपन से शुरु हो कर व्यस्क होने तक चलती हैं। ऑटिस्टिक बच्चे सामाजिक गतिविधियों के प्रति उदासीन होते है, वो लोगो की ओर ना देखते हैं, ना मुस्कुराते हैं और ज्यादातर अपना नाम पुकारे जाने पर भी सामान्य: कोई प्रतिक्रिया नहीं करते हैं। ऑटिस्टिक शिशुओं का व्यवहार तो और चौंकाने वाला होता है, वो आँख नहीं मिलाते हैं और अपनी बात कहने के लिये वो अक्सर दूसरे व्यक्ति का हाथ छूते और हिलाते हैं। तीन से पाँच साल के बच्चे आमतौर पर सामाजिक समझ नहीं प्रदर्शित करते है, बुलाने पर एकदम से प्रतिकिया नहीं देते, भावनाओं के प्रति असंवेदनशील, मूक व्यवहारी और दूसरों के साथ मुड़ जाते हैं। इसके बावजूद वो अपनी प्राथमिक देखभाल करने वाले व्यक्ति से जुडे होते है।
आत्मविमोह से ग्रसित बच्चे आम बच्चो के मुकाबले कम संलग्न सुरक्षा का प्रदर्शन करते हैं (जैसे आम बच्चे माता पिता की मौजूदगी मे सुरक्षित महसूस करते हैं) यद्यपि यह लक्षण उच्च मस्तिष्क विकास वाले या जिनका ए एस डी कम होता है वाले बच्चों मे गायब हो जाता है। ASD से ग्रसित बडे बच्चे और व्यस्क चेहरों और भावनाओं को पहचानने के परीक्षण मे बहुत बुरा प्रदर्शन करते हैं।
आम धारणा के विपरीत, आटिस्टिक बच्चे अकेले रहना पसंद नहीं करते। दोस्त बनाना और दोस्ती बनाए रखना आटिस्टिक बच्चे के लिये अक्सर मुश्किल साबित होता है। इनके लिये मित्रों की संख्या नहीं बल्कि दोस्ती की गुणवत्ता मायने रखती है। ASD से पीडित लोगों के गुस्से और हिंसा के बारे मे काफी किस्से हैं लेकिन वैज्ञानिक अध्ययन बहुत कम हैं। यह सीमित आँकडे बताते हैं कि आत्मविमोह के शिकार मंद बुद्धि बच्चे ही अक्सर आक्रामक या उग्र होते है। डोमिनिक एट अल, ने 67 ASD से ग्रस्त बच्चों के माता-पिता का साक्षात्कार लिया और निष्कर्श निकाला कि, दो तिहाई बच्चों के जीवन मे ऎसे दौर आते हैं जब उनका व्यवहार बहुत बुरा (नखरे वाला) हो जाता है जबकि एक तिहाई बच्चे आक्रामक हो जाते हैं, अक्सर भाषा को ठीक से न जानने वाले बच्चे नखरैल होते हैं।
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